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Home हिंदी कानून क्या कहता है

यौन संबंधों के बाद शादी से इनकार करना धोखा नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट 22 साल बाद युवक को किया बरी

Team MDO by Team MDO
January 11, 2022
in कानून क्या कहता है, हिंदी
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hindi.mensdayout.com

बॉम्बे हाई कोर्ट ने सास से कथित रूप से बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत दे दी, क्योंकि अदालत को आरोप मनगढ़ंत लग रहा था

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लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाने के बाद भी अगर कोई शख्स शादी से इनकार कर देता है, तो उसे धोखाधड़ी नहीं माना जा सकता। जी हां, बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर सेक्स के लिए शादी के वादे की धोखाधड़ी का कोई सबूत नहीं है तो लंबे रिश्ते के बाद भी किसी महिला से शादी करने से इनकार करना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 417 के तहत ‘धोखा’ नहीं माना जाएगा।

जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई (Justice Anuja Prabhudessai) ने कहा कि उदाहरण के लिए इस मामले में दंपति ने 3 साल से अधिक समय तक यौन संबंध बनाए। अदालत ने कहा कि हालांकि महिला की गवाही से यह संकेत नहीं मिला कि वह शादी के वादे के बारे में गलत धारणा पाले हुए थी। इसके अलावा, शुरू से ही उससे शादी नहीं करने के लिए शख्स के इरादा का भी कोई सबूत नहीं है।

हाई कोर्ट ने कहा कि सबूत के अभाव में यह साबित करने के लिए कि अभियोक्ता ने तथ्य की गलत धारणा पर शारीरिक संबंध के लिए सहमति दी थी, जैसा कि आईपीसी की धारा 90 के तहत निर्धारित है, केवल शादी से इनकार करना आईपीसी की धारा 417 के तहत अपराध नहीं होगा। हालांकि, इस मामले में सबसे अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि यह आदेश 22 साल बाद आया है।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, वर्ष 1996 में दर्ज एक FIR में कथित पीड़ित महिला ने आरोप लगाया कि आरोपी व्यक्ति ने शादी के वादे के साथ उसके साथ यौन संबंध बनाए और बाद में उससे शादी करने से इनकार कर दिया। उसके बाद उस शख्स पर  IPC की धारा 376 और धारा 417 के तहत बलात्कार और धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया था। केस दर्ज होने के बाद व्यक्ति को बलात्कार से आरोपों से बरी कर दिया गया, लेकिन धोखाधड़ी के लिए दंडित किया गया। इसके बाद व्यक्ति ने उक्त सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की। राज्य ने उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 376 के लागू नहीं होने का विरोध नहीं किया।

हाई कोर्ट का आदेश

बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने वर्तमान आदेश में सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों पर भरोसा जताया। हाई कोर्ट ने महेश्वर तिग्गा बनाम झारखंड राज्य के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बहुत भरोसा किया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आईपीसी की धारा 90 के तहत तथ्य की गलत धारणा के तहत दी गई सहमति कानून की नजर में सहमति नहीं है, लेकिन तथ्य की गलत धारणा अपराध के साथ निकटता में होनी चाहिए और इसे चार साल की अवधि तक विस्तारित नहीं किया जा सकता।

इस प्रकार देखते हुए हाई कोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उसे IPC की धारा 417 के तहत लड़की को धोखा देने के लिए दोषी ठहराया गया था। इस जुर्म में उसे एक साल की जेल की सजा के साथ 5,000 रुपये का जुर्माने का भी आदेश सुनाया गया था। जज ने अपने फैसले में कहा कि यह बात साबित करने के लिए पर्याप्त तथ्य नहीं है कि महिला को गलत जानकारी देकर आरोपी ने यौन संबंधों के लिए राजी किया था। ऐसे में उसे लंबे संबंध के बाद शादी से इनकार करने के लिए धोखाधड़ी का दोषी नहीं माना जा सकता।

अदालत ने वर्तमान मामले में कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत इस बात की ओर इशारा करता है कि अभियोक्ता और आरोपी एक-दूसरे को जानते थे और वे तीन साल से अधिक समय से यौन संबंध में लिप्त थे। हाई कोर्ट कोर्ट ने कहा कि PW1-अभियोजन पक्ष के साक्ष्य से यह संकेत नहीं मिलता कि उसने तथ्य की गलत धारणा शादी के वादे पर आरोपी के साथ यौन संबंध बनाए थे। अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है कि संबंध स्थापना के बाद से आरोपी ने उससे शादी करने का इरादा नहीं किया था।

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